Saturday, January 19, 2008

तुम मुझे बचाओ मैं तुम्हें बचाऊं

ग्लोबल वॉर्मिग के चलते मौसम में लगातार बदलाव होने की वजह से न केवल ग्लेशियर पिघल रहा है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी बढता ही जा रहा है। क्या सचमुच इन सबके लिए इंसान की बदलती जीवनशैली ही जिम्मेदार है!

लगभग साढे चार अरब वर्ष पहले धरती अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक इसने न जाने कितनी ज्वालामुखियां देखीं और कितनी आंधियां। प्रकृति के कोप से निपटने के लिए धरती माता ने खुद को बहुत मजबूती से थामे रखा, ताकि हम उनकी गोद में आराम से अपना जीवन बिता सकें। मगर धरती मां अब अपनी ही संतान यानी कि मनुष्यों की करतूतों से हैरान-परेशान हैं। अब तक तरह-तरह की मुसीबतों का सामना करने वाली धरती मां को यह समझ में नहीं आ रहा है कि मानव अत्याचार का सामना किस प्रकार करें! दरअसल, अपनी ही संतान उन्हें सबसे बडा शत्रु नजर आने लगा है। मजे की बात यह है कि प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की ललक के चलते मनुष्य न सिर्फ धरती व वनस्पति जगत को तबाह कर रहा है, बल्कि इससे खुद ही अपने लिए बर्बादी का रास्ता भी तैयार कर रहा है। नतीजा ग्लोबल वॉर्मिग के खतरे के रूप में सामने आ रहा है।

ग्लोबल वॉर्मिग से नुकसान
धरती के तापमान में औसतन वृद्धि को ही ग्लोबल वार्मिग कहते हैं। चूंकि धरती का तापमान बढ रहा है, इसलिए बारिश के समय-चक्र में न केवल अनियमितता आने लगी है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी दिन-ब-दिन बढ रहा है और यही वजह है कि वनस्पति व जीव-जगत के ऊपर कई प्रकार के खतरे मंडराने लगे हैं। मौसम विज्ञानियों की राय में ग्रीनहाउस इफेक्ट और ग्लोबल वॉर्मिग के चलते मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है और इसके लिए इंसान की बदलती जीवनशैली ही जिम्मेदार है। ऑक्सफैम व ग्रीनपीस द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिग के बढते प्रभाव को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया, तो सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में प्रगति कर रहा एशिया दशकों पीछे चला जाएगा।
वैसे, ग्लोबल वॉर्मिग के चलते न केवल ग्लेशियर पिघल रहा है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी बढता जा रहा है। कभी सुनामी, तो कभी अचानक मौसम में परिवर्तन। मौसम के परिवर्तन के चलते अनुकूल बारिश नहीं होती। नतीजा- खेती और फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब अनाज की उपज ही नहीं होगी, तो हम खाएंगे क्या?

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का प्रयास
1. बल्ब को बदलना : रेग्युलर बल्ब की जगह कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेन्ट बल्ब का इस्तेमाल।
2. ईधन की बचत : चाहे बाइक हो या कार, ईधन की खपत होती ही है। ऊर्जा की बचत का हरसंभव प्रयास जरूरी।
3. कचडे को जहां-तहां नहीं फेंकना : ऐसी चीजों का इस्तेमाल कम ही करना चाहिए, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। किसी भी वस्तु के इस्तेमाल के बाद उसे फेंकने में सावधानी बरतनी चाहिए।
4. पौधारोपण : एक वृक्ष अपने लाइफ-टाइम में 1 टन कार्बन डायऑक्साइड अवशोषित करता है। सो, पौधे लगाओ।
5. घर व आस-पास के वातावरण को हरा-भरा रखो।
6. एयर कंडीशनर, हीटर, फ्रिज आदि का कम से कम इस्तेमाल करें।
7. ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों का इस्तेमाल : वातावरण में CO2 गैस की मात्रा कम करने के उद्देश्य से ऊर्जा के अन्य स्रोतों - विंड एनर्जी व सोलर एनर्जी को उपयोग में लाया जाना चाहिए और इथेनॉल जैसे बायोफ्यूल्स के इस्तेमाल में तेजी लाई जानी चाहिए।


धरती मां की आस अब भी बाकी है। उन्हें विश्वास है कि उनकी संतान अब अपनी गलतियों को सुधारेंगे। मनुष्यों को तरह-तरह के संकेतों (पोलर आइस कैप का पिघलना, सुनामी, ग्लोबल वॉर्मिग) के माध्यम से धरती माता समझा रही हैं कि अगर तुम्हें अपना अस्तित्व बचाना है, तो मेरे अस्तित्व का ध्यान रखना ही होगा। यानी कि उनका फॉर्मूला बहुत स्पष्ट है - तुम मुझे बचाओ, मैं तुम्हें बचाऊं। और
अगर ऐसा नहीं हो पाया तो?
फिर तो वह दिन दूर नहीं, जब संपूर्ण संसार में भयानक तबाही होगी।

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