Saturday, January 19, 2008

कैसे हुआ ट्रैफिक सिग्नॅल का विकास


दोस्तो, ट्रैफिक सिग्नॅल के बिना हम सुरक्षित सडक यातायात की कल्पना ही नहीं कर सकते। वैसे, क्या आप यह जानते हैं कि आज सडक यातायात को सुचारू बनाने वाला ट्रैफिक सिग्नॅल की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानें कि क्या है, ट्रैफिक सिग्नॅल के विकास की कहानी..

सबसे पहला प्रयोग
ट्रैफिक सिग्नॅल का सबसे पहला प्रयोग ब्रिटेन के हाउस ऑफ पार्लियामेंट में हुआ था। दरअसल, उस समय आज की तरह ट्रैफिक सिग्नॅल्स नहीं होते थे, बल्कि दो रंग (लाल, हरा) की लालटेन हुआ करती थीे, जिन्हें गैस से जलाया जाता था। इनका इस्तेमाल पार्लियामेंट के अस्तबल में घोडों की बडी संख्या को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था। पार्लियामेंट में बडी संख्या में घोडों को रखने की व्यवस्था थी। यहां इन घोडों की देखभाल की भी काफी अच्छी व्यवस्था थी। विभिन्न किस्म के घोडे अपने अलग-अलग स्थान पर रहें, ऐसी स्थिति में इनके मार्गदर्शन के लिए ये गैस लालटेन प्रयोग में लाए जाते थे। लैंप के रंग को देखने के बाद घोडे अपने-अपने स्थान को पहचान सकते थे। इससे ये दुर्घटना से भी बच जाते थे।

जब इस्तेमाल रोकना पडा
गौरतलब है कि आगे जाकर उक्त गैस लालटेन का इस्तेमाल ब्रिटेन के ट्रैफिक पुलिस ऑफिसर भी करने लगे थे। लेकिन एक दिन अचानक इस गैस लालटेन के कारण एक बडी दुर्घटना घट गई। इसके परिणामस्वरूप गैस से जलने वाली इन लालटेनों का प्रयोग बीच में ही बंद कर देना पडा। हालांकि कुछ अन्य माध्यमों से कहीं-कहीं ट्रैफिक सिग्नॅल का इस्तेमाल भी चलता रहा।

पहला व्यवस्थित इस्तेमाल
बात सन 1920 की है। यह वह समय था, जब सडकों पर ट्रैफिक की समस्या धीरे-धीरे बढने लगी। इस दौरान अमेरिका की ट्रैफिक पुलिस ने ट्रैफिक यातायात व्यवस्था को ठीक करने के लिए ट्रैफिक सिग्नॅल्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
दरअसल, पहली बार तभी दुनिया में ट्रैफिक सिग्नॅल का व्यवस्थित इस्तेमाल किया गया था।

किसने की ठोस पहल?
20 नवंबर,1923 को गैरट ऑगस्टस मॉर्गन नामक एक अमेरिकी बिजनेसमैन ने आधुनिक ट्रैफिक सिग्नॅल के निर्माण की दिशा में एक ठोस पहल की। दरअसल, उन्होंने आधुनिक ट्रैफिक संकेत-पद्धति से मिलते-जुलते एक यंत्र का निर्माण किया। कुल मिलाकर देखें, तो मॉर्गन की इसी टेक्नोलॉजी को आधुनिक टै्रफिक सिग्नॅल सिस्टम का आधार माना गया।
मॉर्गन का ट्रैफिक सिग्नॅल अंग्रेजी के टी-अक्षर के आकार पर आधारित था, जिसमें तीन संकेतों का उल्लेख था। पहला, रुको(स्टॉप), दूसरा, जाओ(गो) और तीसरा संकेत सभी दिशा में जाने से संबंधित थे। दरअसल, तीसरा संकेत पैदल यात्रियों से संबंधित था। काफी समय तक मॉर्गन के ट्रैफिक मैनेजमेंट संकेतों को ही पूरे उत्तरी अमेरिका में इस्तेमाल किया गया, लेकिन बाद में इन तीनों संकेतों को तीन रंगों (लाल, हरा और पीला) से जोड दिया गया।

मॉडर्न ट्रैफिक सिग्नॅल
साल-दर-साल ट्रैफिक सिग्नॅल सिस्टम में विकास होता रहा और धीरे-धीरे यह आज के मॉडर्न स्वरूप तक पहुंच गया। आज इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में होता है। वैसे, आजकल इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नॅल का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसमें बारीक इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स से बनी आकृतियां होती हैं और इन आकृतियों के माध्यम से भी सडक पर लोगों को ट्रैफिक संकेत मिलते हैं। अधिकांश मेट्रो सिटीज में तो अब कैमरे वाले ट्रैफिक सिग्नॅल भी लग गए हैं।

दरअसल, कैमरे वाली ट्रैफिक लाइट में कैमरे को ट्रैफिक सिग्नॅल की लाल रंग की लाइट में लगाया जाता है। इस तरह की ट्रैफिक सिग्नॅल की खासियत यह है कि अगर कोई ट्रैफिक सिग्नॅल की रेड लाइट को क्रॉस करने की गलती करता हैे, तो इस कैमरे की मदद से वह तुरंत पकड में आ जाता है।
तो मित्रो, है न दिलचस्प, ट्रैफिक लाइट के विकास की यह कहानी!

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