Saturday, January 19, 2008

बागवानी भी बहुत कुछ सिखाती है



दोस्तो, अक्सर जब तुम लोगों से पूछा जाता है कि तुम्हारी हॉबी क्या है, तो कोई कहता है क्रिकेट खेलना, तो कोई कहता है म्यूजिक सुनना। लेकिन, हम इस बार तुम्हें एक ऐसी यूनीक हॉबी के बारे में बताते हैं, जो सिर्फ न तुम्हारे टाइमपास का एक अच्छा साधन बनेगी, बल्कि तुम्हारे अंदर ऐसे गुणों का विकास भी करती है, जिनका प्रभाव तुम्हारी पर्सनैल्टी पर पडता है।

हम बात कर रहे हैं बागवानी यानी गार्डनिंग की। गार्डनिंग की हॉबी अपनाकर तुम न केवल अपने घर को सुंदर लुक दे पाओगे, बल्कि साथ ही अपनी पर्सनैल्टी की ग्रूमिंग भी कर सकोगे।

इसलिए आओ जानें कि कैसे गार्डनिंग बन सकती है, तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल..


कैसे पैदा हो गार्डनिंग में इंट्रेस्ट?
यह सही है कि गार्डनिंग में सबका इंट्रेस्ट नहीं हो सकता। कारण कोई भी हो, लेकिन कई वजहों में शायद यह भी एक वजह हो सकती है कि गार्डनिंग के लिए जो बातें जरूरी हैं, उनका सभी को भली-भांति ज्ञान नहीं होता है। और अगर जानते भी हैं, तो यह भी हो सकता है कि गार्डनिंग के महत्व से वे परिचित न हों। इसलिए अगर तुम अपने अंदर गार्डनिंग के प्रति इंट्रेस्ट पैदा कर लो, तो इससे मिलने वाले बेनिफिट्स का लाभ उठा सकते हो। आओ जानें, इसके लिए तुम्हें क्या-क्या करना होगा, ताकि तुम खुद गार्डनिंग में इंट्रेस्ट पैदा कर सको।

अपने पैरेन्ट्स या माली से गार्डन में थोडा स्पेस ले लो। यह तुम्हारा अपना स्पेस होगा, जहां तुम खुद गार्डनिंग कर सकोगे।
तुम्हें आगे कैसे और क्या करना है, इसकी प्लॉनिंग में अपने सीनियर दोस्तों की मदद ले सकते हो।
कुछ खास प्रकार के प्लांट, मसलन- सूरजमुखी, कॉर्न, टोमैटो आदि को ही गार्डनिंग के लिए चुनो।
उन फूलों का चयन करो, जिन पर तितलियां और अन्य इंसेक्ट्स आते हैं।
अपने शहर के कृषि कॉलेज, एनजीओ और वहां के स्टॉफ से मिलकर भी तुम अपनी समस्याएं बता सकते हो और उनका हल निकालने में उनकी कुछ खास मदद भी ले सकते हो।


कैसे स्पेशल है गार्डनिंग?

गार्डन में समय बिताना सबको अच्छा लगता है। तुम तो खास तौर पर गार्डन में ही खेलना पसंद करते हो, लेकिन अगर तुम्हारा इंट्रेस्ट गार्डनिंग में है, तो गार्डनिंग तुम्हें बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सिखा सकती है।
रिस्पांसिबिलिटी : जब तुम पौधों की देखभाल करते हो, तो तुम्हारे अंदर जिम्मेदारी के गुण का विकास अपने-आप हो जाता है।
सेल्फ-कॉन्फिडेंस : सेल्फ-कॉन्फिडेंस : पौधों में पानी देकर या खाद डालने के बाद जब वे पौधे बडे होते हैं, उनमें फल-फूल लगते हैं, तो तुम भी अपने अंदर आत्मविश्वास महसूस करते हो।
लव फॉर नेचर : गार्डनिंग करने से तुम प्रकृति के प्रति लगाव महसूस करते हो। तुम्हें आस-पास के नेचर को नजदीक से समझने-जानने का बढिया अवसर मिलता है।
फिजिकल-एक्टिविटी : गार्डनिंग ऐसी हॉबी है, जिसके माध्यम से तुम्हारी फिजिकल एक्सरसाइज भी आसानी से हो जाती है। इसे एन्ज्वॉय करते हुए तुम ढेर सारा वर्कआउट भी कर लेते हो।

कोऑपरेशन : सहयोग की भावना जीवन के हर कदम पर जरूरी होती है। यहां तक कि पौधों की देखभाल में भी। जब तुम बागवानी करते हो, तो तुम्हें समय-समय पर दूसरों की मदद की आवश्यकता पडती रहती है। इससे तुम कोऑपरेशन का महत्व समझ पाते हो। सच तो यह है कि गार्डनिंग से तुम्हारे अंदर कोऑपरेशन की भावना का विकास होता है।

सुरक्षा का भी रहे खयाल
गार्डनिंग करते वक्त हमेशा ध्यान रखो कि तुमसे ऐसी कोई असावधानी न हो जाए, जिससे कोई दुर्घटना की संभावना हो।

तुम मुझे बचाओ मैं तुम्हें बचाऊं

ग्लोबल वॉर्मिग के चलते मौसम में लगातार बदलाव होने की वजह से न केवल ग्लेशियर पिघल रहा है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी बढता ही जा रहा है। क्या सचमुच इन सबके लिए इंसान की बदलती जीवनशैली ही जिम्मेदार है!

लगभग साढे चार अरब वर्ष पहले धरती अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक इसने न जाने कितनी ज्वालामुखियां देखीं और कितनी आंधियां। प्रकृति के कोप से निपटने के लिए धरती माता ने खुद को बहुत मजबूती से थामे रखा, ताकि हम उनकी गोद में आराम से अपना जीवन बिता सकें। मगर धरती मां अब अपनी ही संतान यानी कि मनुष्यों की करतूतों से हैरान-परेशान हैं। अब तक तरह-तरह की मुसीबतों का सामना करने वाली धरती मां को यह समझ में नहीं आ रहा है कि मानव अत्याचार का सामना किस प्रकार करें! दरअसल, अपनी ही संतान उन्हें सबसे बडा शत्रु नजर आने लगा है। मजे की बात यह है कि प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की ललक के चलते मनुष्य न सिर्फ धरती व वनस्पति जगत को तबाह कर रहा है, बल्कि इससे खुद ही अपने लिए बर्बादी का रास्ता भी तैयार कर रहा है। नतीजा ग्लोबल वॉर्मिग के खतरे के रूप में सामने आ रहा है।

ग्लोबल वॉर्मिग से नुकसान
धरती के तापमान में औसतन वृद्धि को ही ग्लोबल वार्मिग कहते हैं। चूंकि धरती का तापमान बढ रहा है, इसलिए बारिश के समय-चक्र में न केवल अनियमितता आने लगी है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी दिन-ब-दिन बढ रहा है और यही वजह है कि वनस्पति व जीव-जगत के ऊपर कई प्रकार के खतरे मंडराने लगे हैं। मौसम विज्ञानियों की राय में ग्रीनहाउस इफेक्ट और ग्लोबल वॉर्मिग के चलते मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है और इसके लिए इंसान की बदलती जीवनशैली ही जिम्मेदार है। ऑक्सफैम व ग्रीनपीस द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिग के बढते प्रभाव को अगर गंभीरता से नहीं लिया गया, तो सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में प्रगति कर रहा एशिया दशकों पीछे चला जाएगा।
वैसे, ग्लोबल वॉर्मिग के चलते न केवल ग्लेशियर पिघल रहा है, बल्कि समुद्र का जलस्तर भी बढता जा रहा है। कभी सुनामी, तो कभी अचानक मौसम में परिवर्तन। मौसम के परिवर्तन के चलते अनुकूल बारिश नहीं होती। नतीजा- खेती और फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब अनाज की उपज ही नहीं होगी, तो हम खाएंगे क्या?

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का प्रयास
1. बल्ब को बदलना : रेग्युलर बल्ब की जगह कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेन्ट बल्ब का इस्तेमाल।
2. ईधन की बचत : चाहे बाइक हो या कार, ईधन की खपत होती ही है। ऊर्जा की बचत का हरसंभव प्रयास जरूरी।
3. कचडे को जहां-तहां नहीं फेंकना : ऐसी चीजों का इस्तेमाल कम ही करना चाहिए, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। किसी भी वस्तु के इस्तेमाल के बाद उसे फेंकने में सावधानी बरतनी चाहिए।
4. पौधारोपण : एक वृक्ष अपने लाइफ-टाइम में 1 टन कार्बन डायऑक्साइड अवशोषित करता है। सो, पौधे लगाओ।
5. घर व आस-पास के वातावरण को हरा-भरा रखो।
6. एयर कंडीशनर, हीटर, फ्रिज आदि का कम से कम इस्तेमाल करें।
7. ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों का इस्तेमाल : वातावरण में CO2 गैस की मात्रा कम करने के उद्देश्य से ऊर्जा के अन्य स्रोतों - विंड एनर्जी व सोलर एनर्जी को उपयोग में लाया जाना चाहिए और इथेनॉल जैसे बायोफ्यूल्स के इस्तेमाल में तेजी लाई जानी चाहिए।


धरती मां की आस अब भी बाकी है। उन्हें विश्वास है कि उनकी संतान अब अपनी गलतियों को सुधारेंगे। मनुष्यों को तरह-तरह के संकेतों (पोलर आइस कैप का पिघलना, सुनामी, ग्लोबल वॉर्मिग) के माध्यम से धरती माता समझा रही हैं कि अगर तुम्हें अपना अस्तित्व बचाना है, तो मेरे अस्तित्व का ध्यान रखना ही होगा। यानी कि उनका फॉर्मूला बहुत स्पष्ट है - तुम मुझे बचाओ, मैं तुम्हें बचाऊं। और
अगर ऐसा नहीं हो पाया तो?
फिर तो वह दिन दूर नहीं, जब संपूर्ण संसार में भयानक तबाही होगी।

कैसे हुआ ट्रैफिक सिग्नॅल का विकास


दोस्तो, ट्रैफिक सिग्नॅल के बिना हम सुरक्षित सडक यातायात की कल्पना ही नहीं कर सकते। वैसे, क्या आप यह जानते हैं कि आज सडक यातायात को सुचारू बनाने वाला ट्रैफिक सिग्नॅल की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानें कि क्या है, ट्रैफिक सिग्नॅल के विकास की कहानी..

सबसे पहला प्रयोग
ट्रैफिक सिग्नॅल का सबसे पहला प्रयोग ब्रिटेन के हाउस ऑफ पार्लियामेंट में हुआ था। दरअसल, उस समय आज की तरह ट्रैफिक सिग्नॅल्स नहीं होते थे, बल्कि दो रंग (लाल, हरा) की लालटेन हुआ करती थीे, जिन्हें गैस से जलाया जाता था। इनका इस्तेमाल पार्लियामेंट के अस्तबल में घोडों की बडी संख्या को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था। पार्लियामेंट में बडी संख्या में घोडों को रखने की व्यवस्था थी। यहां इन घोडों की देखभाल की भी काफी अच्छी व्यवस्था थी। विभिन्न किस्म के घोडे अपने अलग-अलग स्थान पर रहें, ऐसी स्थिति में इनके मार्गदर्शन के लिए ये गैस लालटेन प्रयोग में लाए जाते थे। लैंप के रंग को देखने के बाद घोडे अपने-अपने स्थान को पहचान सकते थे। इससे ये दुर्घटना से भी बच जाते थे।

जब इस्तेमाल रोकना पडा
गौरतलब है कि आगे जाकर उक्त गैस लालटेन का इस्तेमाल ब्रिटेन के ट्रैफिक पुलिस ऑफिसर भी करने लगे थे। लेकिन एक दिन अचानक इस गैस लालटेन के कारण एक बडी दुर्घटना घट गई। इसके परिणामस्वरूप गैस से जलने वाली इन लालटेनों का प्रयोग बीच में ही बंद कर देना पडा। हालांकि कुछ अन्य माध्यमों से कहीं-कहीं ट्रैफिक सिग्नॅल का इस्तेमाल भी चलता रहा।

पहला व्यवस्थित इस्तेमाल
बात सन 1920 की है। यह वह समय था, जब सडकों पर ट्रैफिक की समस्या धीरे-धीरे बढने लगी। इस दौरान अमेरिका की ट्रैफिक पुलिस ने ट्रैफिक यातायात व्यवस्था को ठीक करने के लिए ट्रैफिक सिग्नॅल्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
दरअसल, पहली बार तभी दुनिया में ट्रैफिक सिग्नॅल का व्यवस्थित इस्तेमाल किया गया था।

किसने की ठोस पहल?
20 नवंबर,1923 को गैरट ऑगस्टस मॉर्गन नामक एक अमेरिकी बिजनेसमैन ने आधुनिक ट्रैफिक सिग्नॅल के निर्माण की दिशा में एक ठोस पहल की। दरअसल, उन्होंने आधुनिक ट्रैफिक संकेत-पद्धति से मिलते-जुलते एक यंत्र का निर्माण किया। कुल मिलाकर देखें, तो मॉर्गन की इसी टेक्नोलॉजी को आधुनिक टै्रफिक सिग्नॅल सिस्टम का आधार माना गया।
मॉर्गन का ट्रैफिक सिग्नॅल अंग्रेजी के टी-अक्षर के आकार पर आधारित था, जिसमें तीन संकेतों का उल्लेख था। पहला, रुको(स्टॉप), दूसरा, जाओ(गो) और तीसरा संकेत सभी दिशा में जाने से संबंधित थे। दरअसल, तीसरा संकेत पैदल यात्रियों से संबंधित था। काफी समय तक मॉर्गन के ट्रैफिक मैनेजमेंट संकेतों को ही पूरे उत्तरी अमेरिका में इस्तेमाल किया गया, लेकिन बाद में इन तीनों संकेतों को तीन रंगों (लाल, हरा और पीला) से जोड दिया गया।

मॉडर्न ट्रैफिक सिग्नॅल
साल-दर-साल ट्रैफिक सिग्नॅल सिस्टम में विकास होता रहा और धीरे-धीरे यह आज के मॉडर्न स्वरूप तक पहुंच गया। आज इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में होता है। वैसे, आजकल इलेक्ट्रॉनिक ट्रैफिक सिग्नॅल का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसमें बारीक इलेक्ट्रॉनिक लाइट्स से बनी आकृतियां होती हैं और इन आकृतियों के माध्यम से भी सडक पर लोगों को ट्रैफिक संकेत मिलते हैं। अधिकांश मेट्रो सिटीज में तो अब कैमरे वाले ट्रैफिक सिग्नॅल भी लग गए हैं।

दरअसल, कैमरे वाली ट्रैफिक लाइट में कैमरे को ट्रैफिक सिग्नॅल की लाल रंग की लाइट में लगाया जाता है। इस तरह की ट्रैफिक सिग्नॅल की खासियत यह है कि अगर कोई ट्रैफिक सिग्नॅल की रेड लाइट को क्रॉस करने की गलती करता हैे, तो इस कैमरे की मदद से वह तुरंत पकड में आ जाता है।
तो मित्रो, है न दिलचस्प, ट्रैफिक लाइट के विकास की यह कहानी!

Tuesday, January 15, 2008

किचन टिप्स

बहुत समय से कुच्छ लिखा नहीं सोचा यही सही ।
आप भी लाभ उठाए ।

१.सख्त नींबू को अगर गरम पानी में कुछ देर के लिए रख दिया जाये तो उसमें से आसानी से अधिक रस निकाला जा सकता है।

२.महीने में एक बार मिक्सर और ग्राइंडर में नमक डालकर चला दिया जाये तो उसके ब्लेड तेज हो जाते हैं।

३.नूडल्स उबालने के बाद अगर उसमें ठंडा पानी डाल दिया जाये तो वह आपस में चिपकेंगे नही।

४.पनीर को ब्लोटिंग पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखने से यह अधिक देर तक ताजा रहेगा।

५.मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डालकर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें।

६.एक टीस्पून शक्कर को भूरा होने तक गरम करे। केक के मिश्रण में इस शक्कर को मिला दे। ऐसा करने पर केक का रंग अच्छा आयेगा।

७.फूलगोभी पकाने पर उसका रंग चला जाता है। ऐसा न हो इसके लिए फूलगोभी की सब्जी में एक टीस्पून दूध अथवा सिरका डाले। आप देखेगी कि फूलगोभी का वास्तविक रंग बरकरार है।

८.आलू के पराठे बनाते समय आलू के मिश्रण में थोड़ी सी कसूरी मेथी डालना न भूले। पराठे इतने स्वादिष्ट होंगे कि हर कोई ज्यादा खाना चाहेगा।

९.आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा।

१०.दाल पकाते समय एक चुटकी पिसी हल्दी और मूंगफली के तेल की कुछ बूंदे डाले। इससे दाल जल्दी पक जायेगी और उसका स्वाद भी बेहतर होगा।

११.बादाम को अगर 15-20 मिनट के लिए गरम पानी में भिगो दें तो उसका छिलका आसानी से उतर जायेगा।

१२.चीनी के डिब्बे में 5-6 लौंग डाल दी जाये तो उसमें चींटिया नही आयेगी।

१३.बिस्कुट के डिब्बे में नीचे ब्लोटिंग पेपर बिछाकर अगर बिस्कुट रखे जाये तो वह जल्दी खराब नही होंगे।

१४.कटे हुए सेब पर नींबू का रस लगाने से सेब काला नही पड़ेगा।

१५.जली हुए त्वचा पर मैश किया हुआ केला लगाने से ठंडक मिलती है।

१६.मिर्च के डिब्बे में थोड़ी सी हींग डालने से मिर्च लम्बे समय तक खराब नही होती।

१७.किचन के कोनो में बोरिक पाउडर छिड़कने से कॉकरोच नही आयेंगे।

१८.लहसुन के छिलके को हल्का सा गरम करने से वो आसानी से उतर जाते हैं।

१९.हरी मिर्च के डंठल को तोड़कर मिर्च को अगर फ्रिज में रखा जाये तो मिर्च जल्दी खराब नही होती।

२०.हरी मटर को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए प्लास्टिक की थैली में डालकर फ्रिजर में रख दें।
आनन्द लें इन टिप्स का और मुझे ज़रूर याद रखें ।

सोच बदलें, फिटनेस पाएं

ऐसा भला कौन होगा जिसे बेहतरीन फिटनेस की चाहत नहीं होगी। लेकिन अच्छी फिटनेस रोज-रोज डाइटिंग चार्ट बनाने, भाग कर जिम जाने, पसंदीदा भोजन से दूर...